व्यक्तिगत स्वच्छता
व्यक्तिगत स्वच्छता से तात्पर्य उन आदतों और प्रथाओं से है, जो व्यक्ति अपने शरीर और स्वास्थ्य को स्वच्छ और स्वस्थ रखने के लिए अपनाता है।
निम्नलिखित व्यक्तिगत स्वच्छता के महत्वपूर्ण पहलू हैं:
- नियमित शौच जाना और शौच के बाद साबुन से हाथ धोना।
- प्रतिदिन दांत, मुख-चेहरा, व जीभ की सफाई करना।
- प्रतिदिन स्नान करना।
- स्वच्छ कपड़े व नियमित जूते व चप्पल पहनना।
- नियमित रूप से बाल व नाखून काटना।
- छींकते व खाते समय मुँह पर रुमाल का प्रयोग करना।
- साफ पानी पीना एवं पीने के पानी का सही भंडारण करना।
- शुद्ध भोजन स्वच्छ स्थान पर ग्रहण करना।
उदाहरण: रोज सुबह दांत ब्रश करने और स्नान करने से शरीर साफ और ताजा रहता है। साबुन से हाथ धोने से कीटाणुओं से बचाव होता है।
शौच के बाद सफाई
शौच के बाद उचित सफाई स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।
- शौच क्रिया के लिए सदैव शौचालय का प्रयोग करना चाहिए।
- शौच में पानी के लिए साफ मग या डिब्बे का प्रयोग करना चाहिए।
- शौच के लिए स्वच्छ पानी का प्रयोग करना चाहिए।
- चप्पल पहनकर ही शौच के लिए जाना चाहिए।
- शौच के बाद साबुन से अच्छी तरह से हाथ-पैर धोने चाहिए।
उदाहरण: शौचालय में साफ पानी और साबुन का उपयोग करने से कृमि और जीवाणु संबंधी रोगों से बचा जा सकता है।
सार्वजनिक स्वच्छता
आसपास के वातावरण की पूर्ण सफाई ही सामाजिक या सार्वजनिक स्वच्छता है। इसके अंतर्गत गलियों, सड़कों की सफाई, नदियों, तालाबों व जलाशयों की साफ-सफाई, सार्वजनिक स्थल जैसे अस्पताल, रेलवे स्टेशन, विद्यालय, पार्क आदि की स्वच्छता आवश्यक है।
कचरे के प्रकार:
- गीला कचरा: शाक-सब्जियों व फलों का कचरा, जीवों का मल-मूत्र आदि, जो गलकर सड़ते हैं।
- सूखा कचरा: पॉलिथीन, प्लास्टिक की बनी वस्तुएँ, रबर की वस्तुएँ, टायर, टूटे खिलौने, बिस्कुट, नमकीन आदि के पैकेट, जो आसानी से नष्ट नहीं होते।
क्लीन सिटी ग्रीन सिटी योजना: नगर पालिका ने लोगों को गीला और सूखा कचरा अलग-अलग कूड़ेदान में डालने का सुझाव दिया है।
- सूखा कचरा नीले कूड़ेदान में डालें।
- गीला कचरा हरे कूड़ेदान में डालें।
उदाहरण: स्कूल के पास गीला कचरा (सब्जी के छिलके) हरे कूड़ेदान में और प्लास्टिक की बोतल नीले कूड़ेदान में डालना सार्वजनिक स्वच्छता को बढ़ावा देता है।
कम्पोस्ट पिट
कम्पोस्ट पिट गीले कचरे से खाद बनाने की एक प्रभावी विधि है।
किसी मैदान में एक गड्ढा खोदें। इस गड्ढे में सबसे नीचे कुछ महीन कंकड़ बिछा दें। इसके बाद विद्यालय व घर से निकला कचरा इसमें डालकर ढक दें। इसे नम रखने के लिए 1 सप्ताह में एक या दो बार गड्ढे में पानी डालें। इस तरह 3 से 4 माह में कचरे से खाद बनकर तैयार हो जाएगी, जिसका प्रयोग विद्यालय के बगीचों में किया जा सकता है।
उदाहरण: स्कूल में सब्जी के छिलकों और पत्तियों से कम्पोस्ट पिट बनाकर खाद तैयार करना पर्यावरण के लिए लाभकारी है।
स्वच्छता का महत्व
स्वच्छता स्वास्थ्य का आधार है। यह बीमारियों से बचाव करती है और पर्यावरण को स्वच्छ रखती है।
व्यक्तिगत स्वच्छता का महत्व:
- कीटाणुओं और रोगों से बचाव।
- शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार।
- सामाजिक छवि में वृद्धि।
सार्वजनिक स्वच्छता का महत्व:
- जल स्रोतों और पर्यावरण की शुद्धता।
- संक्रामक रोगों (जैसे मलेरिया, डेंगू) का नियंत्रण।
- सार्वजनिक स्थानों की सुंदरता और उपयोगिता में वृद्धि।
उदाहरण: नियमित स्नान करने से त्वचा स्वच्छ रहती है, और गलियों की सफाई से मच्छरों का प्रकोप कम होता है।
शौचालय का प्रयोग और महत्व
शौचालय का उपयोग स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।
शौचालय की स्वच्छता हेतु ध्यान देने योग्य बातें:
- शौचालय से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण के लिए सोकपिट की व्यवस्था करनी चाहिए।
- शौचालय में कुंडी युक्त दरवाजे लगे होने चाहिए।
- बाल्टी या मग को यथास्थान रखना चाहिए।
- शौचालय की प्रत्येक सप्ताह उत्तम कीटनाशक पदार्थों द्वारा सफाई करनी चाहिए।
- सीवर या सोकपिट को समय-समय पर साफ कराना चाहिए।
शौचालय बनाने के फायदे:
- महिलाओं की सुरक्षा बनी रहती है।
- शौचालय के प्रयोग से अनेक बीमारियों से बचाव होता है।
- जंगली जानवरों तथा साँप-कीड़ों इत्यादि से काटने का भय नहीं रहता है।
- बुजुर्गों एवं बीमार व्यक्तियों के लिए सुविधाजनक है।
खुले में शौच करने के दुष्प्रभाव:
- जल स्रोतों में संक्रामक रोग फैलते हैं, जिसके कारण पानी पीने योग्य नहीं रहता।
- मनुष्य को कृमि संबंधी रोग हो सकते हैं, खासतौर पर बच्चों के स्वास्थ्य पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है।
- सड़क किनारे या झाड़ियों में शौच करने से साँप या कीड़ों का भय बना रहता है।
- बरसात में बाहर शौच करने से संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
- खुले मैदान में पड़ा मल-मूत्र वर्षा के जल के साथ नदियों और तालाबों में मिल जाता है, जिससे संक्रामक रोग फैलते हैं।
- घरों में शौचालय न होने से महिलाओं और लड़कियों को असुविधा और असुरक्षा का सामना करना पड़ता है।
उदाहरण: शौचालय का उपयोग करने से कृमि रोगों से बचा जा सकता है, और महिलाएँ सुरक्षित महसूस करती हैं।
प्रत्येक वर्ष 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस मनाया जाता है।
स्वच्छ भारत के लिए जागरूकता अभियान
स्वच्छ भारत अभियान (Swachh Bharat Abhiyan) भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एक राष्ट्रीय अभियान है, जिसका उद्देश्य देश को स्वच्छ और स्वस्थ बनाना है।
मुख्य उद्देश्य:
- खुले में शौच को समाप्त करना।
- सार्वजनिक और व्यक्तिगत स्वच्छता को बढ़ावा देना।
- कचरा प्रबंधन और पुनर्चक्रण को प्रोत्साहन।
- जल स्रोतों और पर्यावरण की स्वच्छता सुनिश्चित करना।
उदाहरण: स्वच्छ भारत अभियान के तहत गाँवों में शौचालय निर्माण और स्कूलों में स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
स्वच्छता से संबंधित रोग
स्वच्छता की कमी से कई रोग फैल सकते हैं, जो मच्छरों और दूषित पानी के कारण होते हैं।
- मलेरिया: एनाफिलीज नामक मादा मच्छर के काटने से होता है। लक्षण: ठंड के साथ तेज बुखार।
- डेंगू: एडिज एजिप्टी मच्छर के काटने से होता है। लक्षण: तेज बुखार, सिरदर्द, शरीर पर लाल चकत्ते।
- चिकनगुनिया: एडिज एजिप्टी मच्छर के काटने से होता है। लक्षण: बुखार, जोड़ों में तेज दर्द।
- जापानी मस्तिष्क ज्वर: विषाणु द्वारा फैलता है।
उदाहरण: गंदे पानी में मच्छरों के प्रजनन को रोकने के लिए नालियों की सफाई करना मलेरिया और डेंगू से बचाव में मदद करता है।