कार्य की अवधारणा
विज्ञान की भाषा में हमारे द्वारा की गई प्रत्येक गतिविधि को हम कार्य नहीं कहते हैं। जैसे - किसी व्यक्ति द्वारा बल लगाने पर भी एक बहुत भारी पत्थर अपने स्थान से नहीं हटता है जबकि कई व्यक्तियों द्वारा मिलकर बल लगाने पर वह पत्थर बल की दिशा में कुछ दूरी तक हट जाता है। विज्ञान के अनुसार पहली स्थिति में व्यक्ति द्वारा कोई कार्य नहीं किया गया क्योंकि बल लगाने के बावजूद पत्थर अपने स्थान पर स्थिर रहता है। इसमें व्यक्ति द्वारा कार्य करने का मात्र प्रयास किया गया है। दूसरी स्थिति में पत्थर पर बल लगाने से पत्थर बल की दिशा में कुछ दूरी तक हट जाता है। इस स्थिति में व्यक्तियों द्वारा पत्थर पर कार्य किया गया है।
इसी प्रकार यदि आप कोई भारी बोझ सिर पर रखकर कुछ समय तक खड़े रहें तथा पसीने से तर हो जाये तो भी विज्ञान की भाषा में कहा जायेगा कि आपने कोई कार्य नहीं किया। क्योंकि बोझ अपनी जगह पर ही स्थिर है। किन्तु यदि बोझ सिर पर रखकर सीढ़ियों से होकर आप घर की छत पर पहुँचा दे तो कहा जायेगा कि आप ने कार्य किया, क्योंकि आप पृथ्वी के गुरुत्व बल के विरूद्ध बोझ को विस्थापित करते है।
उपरोक्त उदाहरणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि कार्य के लिए दो शर्तों की पूर्ति का होना आवश्यक है:
- वस्तु पर बल का लगना।
- वस्तु का बल के अनुदिश में विस्थापन होना।
S.I. पद्धति में कार्य का मात्रक जूल होता है। यदि विस्थापन शून्य हो तो कोई कार्य नहीं होगा। किया गया कार्य बल के परिमाण और बल के अनुदिश विस्थापन पर निर्भर करता है।
उदाहरण: एक गाड़ी को धक्का देकर 5 मीटर आगे बढ़ाना कार्य है, क्योंकि बल और विस्थापन दोनों मौजूद हैं। लेकिन दीवार को धक्का देने से दीवार नहीं हिलती, अतः यह कार्य नहीं है।
ऊर्जा की अवधारणा
कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। ऊर्जा कम हो जाने से कार्य करने की क्षमता में कमी आ जाती है तथा किसी स्रोत से ऊर्जा प्राप्त होने पर कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है। कोई कार्य ऊर्जा के बिना सम्भव नहीं है।
ऊर्जा को एक वस्तु से दूसरे वस्तु में स्थानान्तरित किया जा सकता है या विभिन्न रूपों में रूपान्तरित किया जा सकता है।
उदाहरण: सूर्य से पौधों को ऊर्जा मिलती है, जो प्रकाश संश्लेषण के लिए उपयोग होती है। एक बैटरी से टॉर्च को ऊर्जा मिलती है, जो प्रकाश उत्पन्न करती है।
कार्य तथा ऊर्जा में संबंध
ऊर्जा और कार्य में सम्बन्ध एक सिक्के के दो पहलू की तरह होता है। वस्तु पर किया गया कार्य उस वस्तु में ऊर्जा के रूप में संचित होता है। ऊर्जा युक्त वस्तु कार्य करने में सक्षम होती है।
उदाहरण: जब आप एक गेंद को ऊपर फेंकते हैं, तो आपका कार्य गेंद में ऊर्जा संचित करता है, जो बाद में गति के रूप में प्रकट होती है।
ऊर्जा के विभिन्न रूप
ऊर्जा के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं:
- गतिज ऊर्जा: किसी वस्तु में उसकी गति के कारण उत्पन्न ऊर्जा को गतिज ऊर्जा कहते हैं। किसी वस्तु की गतिज ऊर्जा बढ़ाने पर उसका वेग बढ़ जाता है। उदाहरण: जब एक तेज गति से चलती क्रिकेट गेंद विकेट से टकराती है, तो (गतिज ऊर्जा के कारण) विकेट दूर जाकर गिरता है। आँधी में टीन उड़ाने की क्षमता, बहते हुए जल में टरबाइन के ब्लेडों को घुमाने की क्षमता, गतिज ऊर्जा के कारण ही सम्भव है। जब एक हथौड़ा कील पर मारा जाता है, तो कील गतिज ऊर्जा के कारण लकड़ी के अन्दर धंस जाती है।
- स्थितिज ऊर्जा: किसी वस्तु में उसकी स्थिति के कारण उत्पन्न ऊर्जा को स्थितिज ऊर्जा कहते है। उदाहरण: खिलोने में चाबी द्वारा स्प्रिंग को एंठने पर स्प्रिंग में संचित ऊर्जा, गुलेल में खिंची गई रबर में संचित ऊर्जा।
- रासायनिक ऊर्जा: भोजन से शरीर को ऊर्जा मिलती है। भोजन के विभिन्न अवयवों में ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा के रूप में संचित रहती है। पेट्रोल, डीजल, और कोयले में भी रासायनिक ऊर्जा होती है। उदाहरण: पेड़-पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में प्रकाश ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरण होता है।
- ध्वनि ऊर्जा: जब किसी वस्तु या माध्यम में कम्पन्न होता है तो ध्वनि उत्पन्न होती है। ध्वनि में कार्य करने की क्षमता होती है। उदाहरण: बादलों की गर्जन से खिड़कियाँ हिलना।
- प्रकाश ऊर्जा: प्रकाश ऊर्जा वस्तुओं को देखने और पौधों के भोजन निर्माण में मदद करती है। उदाहरण: सूर्य, बल्ब, और सौर सेल।
- ऊष्मीय ऊर्जा: दो वस्तुओं के बीच तापान्तर के कारण स्थानांतरित ऊर्जा को ऊष्मीय ऊर्जा कहते हैं। उदाहरण: भाप इंजन में ऊष्मीय ऊर्जा से रेलगाड़ी चलती है।
- विद्युत ऊर्जा: किसी चालक में विद्युत आवेश के प्रवाहित होने पर ऊर्जा के क्षय होने की दर को विद्युत ऊर्जा कहते हैं। उदाहरण: बिजली का बल्ब, हीटर।
- चुम्बकीय ऊर्जा: चुम्बकत्व के गुण के कारण चुम्बक में पाई जाने वाली ऊर्जा। उदाहरण: ट्रांसफार्मर, मोटर।
ऊर्जा के स्रोत
ऊर्जा के स्रोत दो प्रकार के होते हैं:
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत: ऊर्जा के वे स्रोत जो प्रकृति में निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहलाते हैं। ये समाप्त नहीं होते और बार-बार उपयोग किए जा सकते हैं। उदाहरण: सौर ऊर्जा, जल ऊर्जा, पवन ऊर्जा, समुद्री ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा।
- अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत: प्रकृति के ऐसे ऊर्जा स्रोत जो प्राचीन काल से पृथ्वी पर संचित हैं, अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहलाते हैं। ये समाप्त हो सकते हैं। उदाहरण: कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस।
अनवीकरणीय स्रोतों का भण्डार सीमित है, अतः इनका विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक है।
ईंधन: वे पदार्थ जिन्हें जलाकर ऊष्मा उत्पन्न की जाती है, ईंधन कहलाते हैं। जैसे: कोयला, लकड़ी, डीजल, पेट्रोल, केरोसीन, द्रवित पेट्रोलियम गैस।
ईंधन तीन प्रकार के होते हैं:
- ठोस ईंधन: लकड़ी, कोयला, कोक, चारकोल, पैराफिन वैक्स।
- द्रव ईंधन: केरोसीन, पेट्रोल, डीजल, ऐल्कोहल, द्रवित हाइड्रोजन।
- गैसीय ईंधन: प्राकृतिक गैस, द्रवित पेट्रोलियम गैस, बायोगैस, हाइड्रोजन गैस।
बायोगैस: कूड़ा-करकट, गोबर आदि से ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में अपघटन द्वारा प्राप्त होती है। उदाहरण: गोबर गैस प्लांट।
सौर ऊर्जा: सूर्य से प्रकाश और ऊष्मा के रूप में प्राप्त ऊर्जा। उदाहरण: सौर कुकर, सौर सेल।
वायु ऊर्जा: पवन चक्की द्वारा विद्युत उत्पादन। उदाहरण: पवन चक्की।
जल ऊर्जा: बहते जल से ऊर्जा। उदाहरण: पनचक्की।