प्रकाश की अवधारणा
प्रकाश की अनुपस्थिति में हम अपने आस-पास की वस्तुएँ देखने में असमर्थ होते हैं। अँधेरे में जब हम टॉर्च, मोमबत्ती, बल्ब आदि में से किसी को जलाते हैं तो कमरे में रखी सभी वस्तुएँ दिखायी देने लगती हैं। अंधेरे कमरे में रखी गयी वस्तुओं को देखने के लिए हमारी आँखों को ऊर्जा की आवश्यकता होती है। आँखों द्वारा ग्रहण की गयी उस ऊर्जा को जो वस्तुओं को देखने के लिए आवश्यक है, प्रकाश ऊर्जा कहलाती है। किसी वस्तु पर पड़ने वाला प्रकाश जब वस्तु से परावर्तित होकर हमारे आँखों द्वारा ग्रहण किया जाता है तो वस्तु दिखायी पड़ती है।
उदाहरण: जब आप टॉर्च जलाते हैं, तो उसका प्रकाश दीवार पर पड़ता है और परावर्तित होकर आपकी आँखों तक पहुँचता है, जिससे दीवार दिखाई देती है।
प्रकाश के स्रोत
जिन साधनों से हमें प्रकाश ऊर्जा प्राप्त होती है उन्हें प्रकाश स्रोत कहते हैं। प्रकाश स्रोत दो प्रकार के होते हैं:
- प्राकृतिक प्रकाश स्रोत: ऐसे प्रकाश स्रोत जो हमें प्राकृतिक रूप से प्राप्त होते हैं, प्राकृतिक प्रकाश स्रोत कहलाते हैं। सूर्य तथा तारे प्रकाश के प्राकृतिक स्रोत हैं। हमें पृथ्वी पर पर्याप्त मात्रा में प्रकाश सूर्य से ही प्राप्त होता है। कुछ तारे भले ही सूर्य से कई गुना बड़े हैं किन्तु पृथ्वी से उनकी दूरी बहुत अधिक है। अतः वे कम चमकदार तथा छोटे दिखायी पड़ते हैं। सूर्य भी एक तारा है तथा यह सभी तारों की अपेक्षा पृथ्वी के अत्यंत निकट है। अतः यह सभी तारों की अपेक्षा अत्यधिक चमकदार दिखायी पड़ता है। पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है। सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में 8 मिनट 16.6 सेकण्ड का समय लगता है।
- मानव निर्मित प्रकाश स्रोत: जिन प्रकाश स्रोतों का निर्माण मनुष्य द्वारा किया जाता है उन्हें मानव निर्मित प्रकाश स्रोत कहते हैं। जैसे: जलती हुई मोमबत्ती, दीपक, लालटेन, विद्युत बल्ब, ट्यूब लाइट, सी.एफ.एल. (CFL) तथा एल.ई.डी. (LED) आदि। मोमबत्ती, मिट्टी के तेल के दीपक, लालटेन आदि से कम प्रकाश प्राप्त होता है तथा इनसे निकलने वाले गैसों से वातावरण भी प्रदूषित होता है। सी.एफ.एल. और एल.ई.डी. विद्युत बल्ब की तुलना में कम विद्युत ऊर्जा व्यय करके अधिक प्रकाश उत्सर्जित करते हैं।
उदाहरण: सूर्य दिन में प्राकृतिक प्रकाश देता है, जबकि रात में LED बल्ब कमरे को रोशन करता है।
दीप्त एवं अदीप्त वस्तुएँ
वे वस्तुएँ जो स्वयं प्रकाश उत्पन्न करती हैं, दीप्त वस्तुएँ कहलाती हैं। जैसे: जलती हुई मोमबत्ती, सूर्य, तारे, लैम्प, विद्युत बल्ब, ट्यूब लाइट, सी.एफ.एल., एल.ई.डी.। जो वस्तुएँ स्वयं प्रकाश उत्पन्न नहीं करतीं, उन्हें अदीप्त वस्तुएँ कहते हैं। जैसे: मेज, कुर्सी, चारपायी, पुस्तक, दर्पण, चन्द्रमा। चाँदनी रात में चन्द्रमा से प्रकाश प्राप्त होता है किन्तु चन्द्रमा स्वयं दीप्त नहीं है। चन्द्रमा के तल से सूर्य के प्रकाश के परावर्तन द्वारा प्रकाश प्राप्त होता है। अतः चन्द्रमा अदीप्त है।
उदाहरण: जलता हुआ दीपक दीप्त वस्तु है, जबकि किताब अदीप्त वस्तु है क्योंकि यह स्वयं प्रकाश नहीं देती।
प्रकाश का संचरण
प्रकाश के मार्ग में जब कोई अपारदर्शी वस्तु उपस्थित होती है तो वस्तु की छाया प्राप्त होती है। जिससे सिद्ध होता है कि प्रकाश का गमन पथ सरल रेखीय है। किसी समांगी पारदर्शी माध्यम में प्रकाश के गमन पथ को प्रकाश की किरण कहते हैं। गमन पथ पर तीर का निशान लगाकर प्रकाश की दिशा को व्यक्त करते हैं।
अंधेरे कमरे में मोमबत्ती जलाने या बल्ब जलाने पर सम्पूर्ण कमरा प्रकाशित हो जाता है, इससे स्पष्ट होता है कि प्रकाश स्रोत से सभी दिशाओं में फैलता है। पृथ्वी से कुछ ऊँचाई तक ही वायुमंडल है, उसके उपरान्त निर्वात है, फिर भी सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुँच जाता है। इससे पता चलता है कि प्रकाश के संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। निर्वात में प्रकाश की चाल 3 लाख किलोमीटर/सेकण्ड होती है। सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश 500 सेकण्ड में पहुँचता है। किसी अन्य पारदर्शी माध्यम में प्रकाश की चाल निर्वात में प्रकाश की चाल से कम होती है।
उदाहरण: सूर्य का प्रकाश सीधी रेखा में पृथ्वी तक पहुँचता है, जिसे हम सुबह सूर्योदय के समय देख सकते हैं।
पारदर्शी, पारभासी, और अपारदर्शी वस्तुएँ
ऐसी वस्तुएँ जिनसे होकर प्रकाश आर-पार निकल जाता है, उन्हें पारदर्शी (Transparent) वस्तुएँ कहते हैं। जैसे: स्वच्छ काँच, स्वच्छ जल, ग्लिसरीन। ऐसी वस्तुएँ जिनसे होकर प्रकाश का केवल आंशिक भाग बाहर निकलता है, उन्हें पारभासी (Translucent) वस्तुएँ कहते हैं। जैसे: घिसा हुआ काँच, ट्रेसिंग पेपर, तेल लगा हुआ कागज। ऐसी वस्तुएँ जिनसे होकर प्रकाश बिलकुल नहीं निकल पाता है, उन्हें अपारदर्शी (Opaque) वस्तुएँ कहते हैं। जैसे: दफ्ती का टुकड़ा, लकड़ी का टुकड़ा, धातु की चादर, दर्पण।
उदाहरण: खिड़की का साफ काँच पारदर्शी है, मक्खन कागज पारभासी है, और लकड़ी की मेज अपारदर्शी है।
छाया, प्रच्छाया, और उपछाया
किसी प्रकाशीय स्रोत के सामने एक अपारदर्शी वस्तु रखने पर प्रकाश की किरणें वस्तु को पार नहीं कर पातीं, जिससे वस्तु के पीछे एक अंधकार भाग दिखाई पड़ता है, जिसे छाया कहते हैं। प्रकाश के बिन्दु आकार के स्रोत को बिन्दु स्रोत कहते हैं, तथा प्रकाश के बड़े स्रोत को विस्तारित स्रोत कहते हैं। विस्तारित स्रोत का प्रत्येक बिन्दु, बिन्दु स्रोत की तरह कार्य करता है। सूर्य सभी स्रोतों की तुलना में विस्तारित स्रोत है।
जब सूर्य के प्रकाश के सामने आपका शरीर, जो कि अपारदर्शी माध्यम है, आ जाता है, तो प्रकाश किरणों के लिए वह अवरोध उत्पन्न करता है। अतः पृथ्वी के सतह के जितने भाग पर सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचता है, उस भाग पर एक अंधकारमय सूर्य आकृति बनती है, जिसे छाया कहते हैं। जब प्रकाश के विस्तारित स्रोत से अपारदर्शी वस्तु की छाया बनती है, तब यह छाया एक समान काली नहीं होती। छाया का मध्य भाग अधिक काला होता है, वह प्रच्छाया (Umbra) कहलाता है। प्रच्छाया के चारों ओर का कम काला भाग उपछाया (Penumbra) कहलाता है।
उदाहरण: एक पेड़ की छाया में गहरा काला भाग प्रच्छाया है, और हल्का भाग उपछाया है।
सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण
यदि परिक्रमा के दौरान सूर्य, पृथ्वी, तथा चन्द्रमा तीनों एक सीधी रेखा में आ जाते हैं, तो ग्रहण लगता है।
सूर्यग्रहण
पृथ्वी तथा चन्द्रमा द्वारा चक्कर लगाते-लगाते एक ऐसी स्थिति आ जाती है कि सूर्य, चन्द्रमा, तथा पृथ्वी तीनों एक सरल रेखा में इस प्रकार आ जाते हैं कि चन्द्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है। इस स्थिति में चन्द्रमा, सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरणों को पृथ्वी तक आने से रोकता है, जिसके कारण चन्द्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ने लगती है और पृथ्वी के कुछ हिस्सों से सूर्य दिखायी नहीं देता है, इस स्थिति को सूर्यग्रहण कहते हैं।
पृथ्वी का कुछ भाग चन्द्रमा की प्रच्छाया में होता है और कुछ भाग उपछाया में होता है। चन्द्रमा की प्रच्छाया पृथ्वी पर बनती है और पृथ्वी के इस स्थान से हमें सूर्य दिखायी नहीं देता है तथा अंधेरा हो जाता है। इस घटना को पूर्ण सूर्यग्रहण (Total Solar Eclipse) कहते हैं। चन्द्रमा की उपछाया (Penumbra) पृथ्वी के जिस स्थान पर बनती है, वहाँ से सूर्य का कुछ भाग दिखायी देता है। इन स्थानों पर खण्ड या आंशिक सूर्य ग्रहण दिखायी देता है। सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन होता है।
चेतावनी: सूर्य ग्रहण को कभी भी नंगी आँखों से नहीं देखना चाहिए। सूर्यग्रहण को नंगी आँख से देखने पर आँखें क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। सूर्य ग्रहण को देखने के लिए विशेष प्रकार के शीशे से बने चश्मे का प्रयोग करते हैं। सूर्य ग्रहण को किसी बर्तन में भरे पानी से भी देख सकते हैं।
उदाहरण: 24 अक्टूबर 1995 को भारत में पूर्ण सूर्यग्रहण दिखाई दिया, जिसमें डायमण्ड रिंग (Diamond Ring) की चमकती गोलीय आकृति दिखी।
चन्द्रग्रहण
चन्द्रमा तथा पृथ्वी चक्कर लगाते-लगाते जब एक सरल रेखा में इस प्रकार आ जाते हैं कि पृथ्वी, सूर्य, तथा चन्द्रमा के बीच आ जाय, तो चन्द्र ग्रहण लगता है। पृथ्वी और चन्द्रमा अदीप्त हैं तथा दोनों स्वयं प्रकाश उत्सर्जित नहीं करते। जब सूर्य और चन्द्रमा के मध्य पृथ्वी आ जाती है, तो सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा तक नहीं पहुँच पाता, क्योंकि पृथ्वी, सूर्य से आने वाले प्रकाश की किरणों के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करती है, जिसके फलस्वरूप चन्द्रग्रहण लगता है।
जब चन्द्रमा, पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) से गुजरता है, जिससे सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा तक नहीं पहुँच पाता है, फलस्वरूप पृथ्वी से चन्द्रमा नहीं दिखायी पड़ता। यह घटना पूर्ण चन्द्र ग्रहण कहलाती है। जब चन्द्रमा पृथ्वी की उपछाया से होकर गुजरता है, तो चन्द्रमा के कुछ भाग पर प्रकाश पड़ने लगता है, और वह भाग हमें आंशिक रूप से दिखायी देता है। इस स्थिति को खण्ड चन्द्रग्रहण या आंशिक चन्द्रग्रहण कहते हैं। चन्द्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन होता है।
उदाहरण: पूर्णिमा की रात को चन्द्रग्रहण के दौरान चन्द्रमा पूरी तरह या आंशिक रूप से अदृश्य हो सकता है।