जल की अवधारणा
हमें जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन के अतिरिक्त सबसे अधिक जल की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर जीवन जल के कारण ही है।
परिभाषा: जल एक रासायनिक यौगिक (H₂O) है जो जीवन के लिए आवश्यक है और पृथ्वी पर ठोस, द्रव, और गैस अवस्थाओं में पाया जाता है।
उदाहरण: प्यास बुझाने के लिए हम पानी पीते हैं, जो शरीर के लिए जरूरी है।
जल की आवश्यकता
जल जीवधारियों का मूलभूत घटक है। सभी पेड़-पौधों और जंतुओं के शरीर में जल बड़ी मात्रा में उपस्थित रहता है। जैसे, मनुष्य के शरीर में भार के अनुसार 70%, हाथी के शरीर में 80%, और पेड़-पौधों में 60% तक जल उपस्थित रहता है। मानव शरीर में जल भोजन के आवश्यक तत्वों को एक अंग से दूसरे अंग तक पहुँचाता है और शरीर का तापमान नियंत्रित करता है। जल में घुली ऑक्सीजन जलीय जीवों के श्वसन के लिए आवश्यक है। हानिकारक पदार्थ, जैसे यूरिया और लवण, जल के माध्यम से मूत्र और पसीने के रूप में बाहर निकलते हैं।
उदाहरण: गर्मी में पसीना निकलने से शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है।
जल की उपयोगिता
जल के विभिन्न उपयोग निम्नलिखित हैं:
- दैनिक कार्य: जल का उपयोग पीने, खाना पकाने, सफाई करने, कपड़ा धोने, स्नान करने, शौचालय, और सिंचाई आदि में किया जाता है।
- कृषि: बीजों का अंकुरण, पौधों में प्रकाश-संश्लेषण, और जैविक क्रियाओं के लिए जल आवश्यक है। बिना जल के खेतों में सिंचाई असंभव है।
- उद्योग: जल का उपयोग बॉयलर में भाप बनाने, रसायनों को घोलने, और मशीनों की सफाई के लिए किया जाता है।
- विद्युत उत्पादन: नदियों पर बांध बनाकर जल से विद्युत तैयार किया जाता है।
- परिवहन: नदियों, झीलों, और समुद्रों में नाव और जहाज द्वारा सामान और मनुष्य एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते हैं।
- मनोरंजन: मछली पकड़ना, तैराकी, और नौकाविहार जल के द्वारा संभव हैं।
- जलीय जीवन: जल अनेक वनस्पतियों और जंतुओं (जैसे मछली, कमल, मगरमच्छ) का निवास स्थान है।
- प्रकीर्णन: जल द्वारा कीटाणुओं, बीजों, और फलों का प्रकीर्णन होता है, जैसे नदी के किनारे वृक्षों के बीजों का बिखराव।
उदाहरण: नदी पर बांध बनाकर बिजली बनाना और खेतों में सिंचाई के लिए पानी का उपयोग।
जल के स्रोत
जल के प्राकृतिक स्रोत निम्नलिखित हैं: नदी, तालाब, झरना, वर्षा, पर्वतों पर जमी बर्फ, और भूमिगत जल। कुआँ, नलकूप, और हैंडपंप द्वारा भूमिगत जल प्राप्त किया जाता है। समुद्र पृथ्वी पर जल का सबसे बड़ा स्रोत है, जो धरातल के दो-तिहाई से अधिक भाग को घेरे हुए है। हालांकि, समुद्र का जल खारा होता है (लगभग 3.6% अशुद्धियाँ, जिसमें 2.6% नमक) और बिना शुद्धिकरण के पीने या कृषि के लिए उपयुक्त नहीं है। वर्षा का जल अपेक्षाकृत शुद्ध होता है, लेकिन वायु प्रदूषण के कारण इसमें अम्ल (अम्ल वर्षा) हो सकता है।
परिभाषा: जल के स्रोत वे प्राकृतिक या कृत्रिम स्थान हैं, जहाँ से जल प्राप्त होता है।
उदाहरण: वर्षा का जल इकट्ठा करके पीने के लिए उपयोग करना।
जल के भौतिक गुण और अवस्थाएँ
जल के भौतिक गुण निम्नलिखित हैं:
- रंग और गंध: जल रंगहीन और गंधहीन होता है।
- स्वाद: शुद्ध जल स्वादहीन होता है।
- अवस्थाएँ: जल तीन अवस्थाओं में पाया जाता है: ठोस (बर्फ), द्रव (जल), और गैस (जलवाष्प)।
- हिमांक और क्वथनांक: जल का हिमांक 0°C और क्वथनांक 100°C होता है।
- विलेयता: जल में अधिकांश पदार्थ घुल जाते हैं, इसलिए इसे सार्वत्रिक विलायक कहते हैं।
- विद्युत चालकता: शुद्ध जल विद्युत का कुचालक है।
विस्तार: जल 0°C पर बर्फ में बदलता है और 100°C पर जलवाष्प में। पौधों में रंध्रों के माध्यम से जलवाष्प वायुमंडल में जाता है।
उदाहरण: गर्मी में पानी उबालने पर भाप बनना जल की गैस अवस्था को दर्शाता है।
वाष्पन और संघनन
द्रव जल का वाष्प रूप में परिवर्तन वाष्पन कहलाता है। जलवाष्प का द्रव जल में परिवर्तन संघनन कहलाता है। पौधों के रंध्रों से अतिरिक्त जल वाष्पीकृत होकर वायुमंडल में मिलता है, जो ग्रीष्म ऋतु में तेजी से होता है।
परिभाषा:
- वाष्पन: द्रव जल का गर्मी के कारण गैस (जलवाष्प) में बदलना।
- संघनन: जलवाष्प का ठंडा होकर द्रव जल में बदलना।
उदाहरण: गीले कपड़े धूप में सूखना वाष्पन का उदाहरण है, और ठंडे गिलास पर पानी की बूँदें बनना संघनन का।
मृदु और कठोर जल
लवणों की घुलनशीलता के आधार पर जल मृदु और कठोर होता है। मृदु जल में लवणों की मात्रा कम होती है और यह साबुन के साथ अधिक झाग देता है। कठोर जल में कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे लवण अधिक होते हैं, जो साबुन के साथ कम झाग देते हैं। कठोर जल बॉयलर में पपड़ी जमा करता है, जिससे अधिक ईंधन खर्च होता है और बॉयलर फटने का खतरा रहता है।
परिभाषा:
- मृदु जल: वह जल जिसमें लवणों की मात्रा कम हो और जो साबुन के साथ अधिक झाग दे।
- कठोर जल: वह जल जिसमें लवणों की अधिकता हो, जो साबुन के साथ कम झाग दे और उद्योगों के लिए अनुपयुक्त हो।
उदाहरण: वर्षा का जल मृदु होता है, जबकि भूमिगत जल कठोर हो सकता है।
जल में अशुद्धियाँ और उनका शोधन
जल में अशुद्धियाँ (जैसे धूल, कीटाणु, और लवण) और रोग के कीटाणुओं को हटाने की प्रक्रिया जल शोधन कहलाती है। अशुद्ध जल से टायफाइड, अतिसार, हैजा, और पीलिया जैसे रोग फैलते हैं। शोधन की प्रक्रियाएँ निम्नलिखित हैं:
- तलछटीकरण: जल को टंकी में एकत्रित कर निलंबित अशुद्धियों को तल में बैठने देना। फिटकरी (K₂SO₄·Al₂(SO₄)₃·24H₂O) प्रक्रिया को तेज करती है।
- छानना: जल को कोयला, कंकड़, और रेत की परतों से छानना, जो अघुलनशील अशुद्धियों को हटाता है। सक्रिय कार्बन रंग और गंध को दूर करता है।
- क्लोरीनीकरण: छने हुए जल में ब्लीचिंग पाउडर (CaOCl₂) या क्लोरीन गैस डालकर कीटाणुओं को नष्ट करना।
- अन्य रसायन: पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO₄) और ओजोन (O₃) भी कीटाणुओं को नष्ट करते हैं।
उदाहरण: जल शोधन संयंत्र में नदी के पानी को छानकर और क्लोरीन डालकर पीने योग्य बनाना।