वास स्थान
वह स्थान जहाँ किसी जीवधारी को पर्याप्त भोजन, सुरक्षा, प्रजनन तथा सभी अनुकूल दशाएँ उपलब्ध होती हैं, उसे उसका वास स्थान कहते हैं।
प्रकार:
- जलीय वास स्थान: जल में रहने वाले जीव जलीय जीव कहलाते हैं, जैसे मछली, सिंघाड़ा, जलकुंभी, कमल आदि।
- स्थलीय वास स्थान: स्थल पर पाए जाने वाले जीव स्थलीय जीव कहलाते हैं, जैसे गाय, बकरी, बैल, कुत्ता, बिल्ली, नीम, आम, अमरूद आदि।
- मरुस्थलीय वास स्थान: रेगिस्तान में पाए जाने वाले जीव मरुस्थलीय जीव कहलाते हैं, जैसे ऊँट, बबूल, नागफनी।
- उभयचर: कुछ जीव जल और स्थल दोनों पर रहते हैं, उन्हें उभयचर कहते हैं, जैसे मेंढक।
उदाहरण: मछली जल में, गाय स्थल पर, और ऊँट रेगिस्तान में रहता है।
अनुकूलन की परिभाषा
प्रत्येक जीवधारी को किसी निवास स्थान पर रहने के लिए उपयुक्त दशाएँ आवश्यक होती हैं। इन्हीं उपयुक्त दशाओं के अनुसार जीवधारी में अपने को ढालने की क्षमता का विकास होता है, जिसे अनुकूलन कहते हैं।
आकृति, आकार, रंग, रूप, संरचना, तथा आवास संबंधी लक्षणों में ऐसा परिवर्तन जो शरीर को विशेष पर्यावरण में सफलतापूर्वक जीवित रहने में सहायक होता है, अनुकूलन कहलाता है।
उदाहरण: मछली का धारारेखित शरीर तैरने में मदद करता है, ऊँट का कूबड़ वसा संग्रह करता है।
जलीय जीवों में अनुकूलन
जलीय जंतुओं और पौधों में जल में जीवित रहने के लिए विशेष अनुकूलन पाए जाते हैं।
जलीय जंतुओं में अनुकूलन:
- मछली के शरीर पर जल-रोधी शल्क पाए जाते हैं।
- मछली में श्वसन के लिए गलफड़े (गिल्स) होते हैं।
- मछली का शरीर धारारेखित और चपटे पंख वाला होता है, जो तैरने में सहायक है।
- मछली में गर्दन का अभाव और आँखों पर निमेषक पटल होता है।
- मेंढक के पश्चपाद में पादजाल जल में तैरने और लंबी मांसपेशियाँ स्थल पर कूदने में सहायता करती हैं।
- मेंढक जल में त्वचा द्वारा और स्थल पर फेफड़ों द्वारा श्वसन करता है।
जलीय पौधों में अनुकूलन:
- जलीय पौधों का शरीर कोमल और कमजोर होता है, क्योंकि इनमें मृदु ऊतक अधिक और काष्ठीय ऊतक कम होता है।
- पत्तियाँ पतली, कटी-फटी, या तैरने की अवस्था में होती हैं।
- पत्तियों में रंध्रों का अभाव होता है।
- जड़ तंत्र अल्प विकसित होता है; तना, पर्णवृंत, और पत्तियों में वायु कोष होते हैं, जो पौधे को हल्का बनाते हैं।
- शरीर पर जल-रोधी मोम या उपचर्म की परत होती है, जो सड़ने से बचाती है।
- उदाहरण: जलकुंभी, सिंघाड़ा, वेलिसनेरिया, हाइड्रिला।
उदाहरण: कमल की पत्तियाँ तैरती हैं, मछली के गलफड़े पानी में श्वसन करते हैं।
स्थलीय जीवों में अनुकूलन
स्थलीय जीव और पौधे स्थल पर जीवित रहने के लिए अनुकूलित होते हैं।
स्थलीय जंतुओं में अनुकूलन:
- साँस लेने के लिए विकसित श्वसन तंत्र, जैसे फेफड़े, होता है।
- मजबूत अंग और हड्डियाँ स्थल पर चलने-दौड़ने में मदद करती हैं।
- उदाहरण: बिल्ली, कुत्ता, सियार, भेड़, बकरी, गाय।
स्थलीय पौधों में अनुकूलन:
- तने मजबूत और पत्तियाँ चमकीली व चौड़ी होती हैं।
- रंध्रों द्वारा गैसीय आदान-प्रदान होता है।
- जड़ तंत्र विकसित होता है, जो मिट्टी में गहराई तक जाता है।
- उदाहरण: नीम, आम, अमरूद, बबूल।
उदाहरण: गाय के फेफड़े स्थल पर श्वसन करते हैं, नीम का जड़ तंत्र मिट्टी से जल खींचता है।
मरुस्थलीय जीवों में अनुकूलन
मरुस्थलीय जीव और पौधे रेगिस्तान की कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए अनुकूलित होते हैं।
मरुस्थलीय जंतुओं में अनुकूलन:
- जल संचय, खुरदरी त्वचा, अधिक बाल, लंबे पैर, और गद्देदार तलवे रेगिस्तान में दौड़ने में सहायक होते हैं।
- ऊँट का कूबड़ वसा संचित करता है।
मरुस्थलीय पौधों में अनुकूलन:
- पानी की कमी, तेज सूर्य प्रकाश, और उच्च तापमान को सहन करने की क्षमता।
- तना मांसल, चपटा, हरा, और स्पंजी होता है, जो भोजन बनाता और जल संचित करता है, जैसे नागफनी।
- जड़ तंत्र गहरा और फैला हुआ होता है।
- पत्तियाँ मांसल, काँटों, या शल्कों के रूप में होती हैं, जो वाष्पोत्सर्जन कम करती हैं, जैसे नागफनी, घीक्वार।
- रंध्र गड्ढों में धसे रहते हैं, जैसे कनेर।
उदाहरण: ऊँट लंबे समय तक बिना पानी के जीवित रहता है, नागफनी का तना जल संग्रह करता है।
अन्य जीवों में अनुकूलन
कीटों में अनुकूलन:
- उड़ने के लिए दो जोड़ी पंख होते हैं।
- श्वास रंध्रों से हवा शरीर में प्रवेश करती है, जिससे शरीर हल्का रहता है।
- उदाहरण: तितली, मधुमक्खी, घरेलू मक्खी।
पक्षियों में अनुकूलन:
- शरीर नौकाकार और धारारेखित होता है।
- अग्रपाद पंखों में रूपांतरित होते हैं, जो उड़ने में सहायक हैं।
- अस्थियाँ खोखली और वायु से भरी होती हैं, जो शरीर को हल्का बनाती हैं।
- फेफड़ों से जुड़े वायु कोष उड़ते समय शरीर को हल्का रखते हैं।
उदाहरण: तितली के पंख उड़ने में मदद करते हैं, चील की खोखली हड्डियाँ उड़ान को आसान बनाती हैं।